गति-मुक्ति
( छत्तीसगढी कहिनी संग्रह )
रामनाथ साहू
वैभव प्रकाशन
रायपुर ( छ.ग. )
छत्तीसगढ राजभाषा आयोग रायपुर के आर्थिक सहयोग से प्रकाशित
गति-मुक्ति
( छत्तीसगढी कहिनी संग्रह )
समरपन
छत्तीसगढी अऊ हिन्दी के समरथ साहित्यकार श्री अंजनी कुमार ‘अंकुर’ ला
मोती अऊ धागा
1. छानही
2. बीज
3. चक्का जाम
4. काकर शहर काकर घर
5. गणित के पाठ
6. पूजा-आरती
7. टिकट
8. गति-मुक्ति
9. नडउकरी
10. गंवतरी
11. कोंचई पान के इड्हर
12. ददा-बेटा
13. छाया-अगास
14. सुरबईहा
छानही
तीनों के तीनों छानही हर एके कोती रहिस, गाँव मा जाये के बेरा मा डेरी कोती अऊ उहाँ ले आये के बेरा मा जेवनी कोती । ये तीनों छानही हर तीन संग, पाठी-पिठा भाई कईलास, गजालाल अक सुन्दरू के रहिस । ये तीनों भई के भरे-पूरे घर परिवार मन ये तीनों छानही के तरी मन मा फूलत-फरत रहिन । सब कुछ ठीक- ठाक रहिस फेर एकठन जिनिस के फरक रहिस ये छानही मन मा।
वो फरक रहिस छानही के जिनिस मन मा। कईलास के छानही हर छानही नइ होईस वोहर तो पक्का छत रहिस सिरमिट गिट्टी के ढलई वाला। गजालाल के छानही हर छवाये रहिस खपरा मनले त छेवर मा सुन्दरू के हर रहिस करईन के ।
छानही मन के ये फरक हर सुरुच ले नई रहिस । बाँटा-रोटी के बेरा तो तीनों के तीनों एक-एक ठन छितका कुरिया भर पाये रहिन । पाछु कईलास हर कछेरी मा चपरासी बन गय त गजालाल हर नून- मिरचा बेचे के बैपार सुरु कर दिस । सिरिफ सुन्दरू हर रहिस जय के तस, वोई दू टेपरी के खेती मा जाँगर टोरई भर वोकर बुता रहिस ।
ये सब के असर हर वोमन के छानही मा दिखे लग गय रहय। छानही हर घर के कहानी कहिथे तेकरे सेथी सबले ऊँच छानही कईलास के, मंझोलन गजालाल के अऊ सबले तरी रहिस सुन्दरू के।
गजालाल भई ददा के छानही मोर ले उप्पर हे… । वोकर घलो मोर ले बडुका हे… जादा हे । सुन्दरू गजालाल के खपरा के छानही ला देखत गुनिस अऊ चल आज भिथिया के वो पार का होवत हे आरो गारो ले कहिके मंझिला गजालाल के अंगनईया मा आ गइस…। ” आ सुन्दरू…।” गजालाल अंगना मा हो के बड्डे भई कईलास के पक्का के छानही ला देखत रहिस ।
”सुन्दरू…।” वोहर किहिस ।
‘हाँ, भई ददा, ” सुन्दरू वोकर उतारा मा किहिस ।
‘”कईलास भईददा के छानही हर मोर छानही ले ऊँच हावै अऊ वोकर घलो मोर ले जादा हे, आना?” गजालाल कईलास के पक्का के छानही ला देखत पूछिस त सुन्दरू भक्क खा गय । अतका बेरा ला वोहर खुद अपन अंगनईया मा ठाढ होके येकर छानही ला ऊँच कहत रहिस हे, अब ये गजालाल भई ददा हर बडका भई कईलास के छानही ला देखके वोइसनहेच्च गुनत हे जईसन वोहर पहिली गुनत रहिस। सुन्दरू ये पईत मुचमुचा उठिस।
‘तैं काबर हाँसे भई ।!” गजालाल सुन्दरू ला किहिस।
”छोडु भई ददा, ये छानही-पुरान ला अऊ बता कईसन हस तऊन ला..।'”‘ ”चल आज वो पार बडुखा के घर ला किंजर बुल आबो । आरो-गारो लेवत आबो।”
”चल, ठीक कहत हावस, आखिर वोहू घर हर तो हमरेच आय न, तो वोकर हाल जानना जरूरी घलव हे…
”हमन अईसन सोचत हन बडका के पक्का घर-दुआर ठाठ – बाट ला देखत, फेर का वोहर हमन बर अईसनहेच सोच थे?” गजालाल पूछिस। तोर ला कमजोर मैं… का तैं मोर बर अईसन सोचथस? सुन्दरू मने मन मा किहिस फेर परगट मा हाँस भरिस।
दूनों के दूनों छोटे अऊ मंझिला भई बडका भई के दुवारी गईन भिथिया हर जुरे हावै, फेर एक जगह उठना बईठना हफ्ता महीना भर नई हो पाये। आज बडका भई कईलास घलो घर मा सुछिन्धा बईठे रहिस । वोमन ला आवत देखिस त वोह उठ ठाढ हो गइस । तीनों भई गोठ बात मा रम गईन, फेर येती अगास मा करिया बादर मन घलो बहसबाजी मा रमे के सुरू कर दिन। अउ वोमन के बहस हाँसी-दिल्लगी हर ये भुईयाँ ले सुनाय लागिस । येती पीली भऊजी गुर गोरस लानिस, त ठीक वोतकिच बेरा अगास मा घलो बग्ग ले बिजली के लहुकना हर दिखिस। सुन्दरू एक पईत अगास ला देखिस, तहाँ ले फिर गहना गुहा चमकात भऊजी के मुख ला… ।
येती गोठ बात छेवर होयेच नई पाईस हे अऊ अगास ले सुरू हो गय बरसे बर रस के धार । सुन्दरू ला बडे भई कईलास के पक्का छानही के तरी बईठे अब्बड नीक लागत रहे । एक धरी के गय ले बरसात ह रूकिस। अब गजालाल अऊ सुन्दरू कईलास ला जय गोहार करत निकल आईन अऊ गजालाल के घर पहुँचिन। उहाँ परछी मा माढे चीज वसूत मन भीज गय रहें। ” पक्का छत के ओईरछा ला खपरा के छानही थोरहे झोंके सकिही । बड्का मन के छत के पानी के सेथी ये परछी हर भीज गय हे।” साँति गजा लाल के सुआरी जतन करत किहिस त सुन्दरू के धियान आईस अऊ वोहर लहुटा पाँव फिर के अपन घर आईस, त घर मा करईन छानही ले चूहे पानी हर जगह-जगहा भरे रहे। वोकर सुआरी बासन बाई हर बहिरी मा बाहरत रहे परछी घर ला… ।
अऊ गजा भई ददा के खपरा छानही के धार ला करईन हर थोरहे झोंके सकिहि । सुन्दरू किहिस धीरन्त सुर मा।